चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है…” तन्हाई में बैठकर दर्द को अपनी क़लम से लिखता हूँ, मेरे कमरे को सजाने कि तमन्ना है तुम्हें, वक्त से उधार माँगी किस्तें चुका रहा हूँ, कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे तिरी ख़ुशबू मिरी चादर से नहीं जाती है…” https://youtu.be/Lug0ffByUck